यूसुफ़ की कहानी – विश्वास, धैर्य और परमेश्वर की योजना

“क्या एक सपना हमारी पूरी ज़िंदगी बदल सकता है? यूसुफ़ की कहानी इसी सच का सबसे अद्भुत उदाहरण है,जहाँ एक छोटा-सा सपना उसे गड्ढे से मिस्र के सिंहासन तक ले जाता है।”
भाइयों की ईर्ष्या, बेचे जाने का दर्द, जेल की अंधेरी रातें, और हर बार टूटने के बावजूद परमेश्वर पर यूसुफ़ का अटूट विश्वास… यह कहानी सिर्फ संघर्ष की नहीं, बल्कि विश्वास की ताकत की भी है।
“जानिए कैसे यूसुफ़ के सपने, संघर्ष और विश्वास ने उसकी किस्मत ही नहीं,बल्कि उसके पूरे परिवार की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी।”
यूसुफ़ का परिचय और पिता का प्रेम
बाइबल में यूसुफ़ (Joseph) का नाम बहुत खास है। वह याकूब (Jacob) और राहेल (Rachel) का बेटा था। याकूब के बारह पुत्र थे, लेकिन यूसुफ़ से उसे सबसे अधिक प्रेम था क्योंकि वह बुढ़ापे की संतान था और राहेल का बेटा था।
पिता का यह विशेष प्रेम भाइयों को अच्छा नहीं लगता था। अक्सर जब एक बच्चे को परिवार में ज़्यादा महत्व दिया जाता है तो बाकी बच्चों के मन में जलन पैदा हो जाती है। यही बात यूसुफ़ के भाइयों के साथ भी हुई।
याकूब ने यूसुफ़ को एक रंग-बिरंगा वस्त्र (special coat) दिया था। यह वस्त्र न केवल सुंदर था बल्कि यह भी दर्शाता था कि याकूब उसे सबसे अधिक महत्व देता है। भाइयों के मन में ईर्ष्या और भी बढ़ गई।

👉 क्या आपने कभी महसूस किया है कि जब किसी को घर, स्कूल या नौकरी में ज़्यादा महत्व मिलता है तो दूसरों के दिल में जलन पैदा हो जाती है? बिल्कुल ऐसा ही उस समय यूसुफ़ के भाइयों के साथ हुआ।
यूसुफ़ के सपने और भाइयों की जलन
यूसुफ़ जब किशोरावस्था में था तब उसे दो अद्भुत सपने आए। पहले सपने में उसने देखा कि खेत में सबके धान की पूलियाँ हैं और भाइयों की पूलियाँ झुककर उसकी पूली को प्रणाम कर रही हैं। दूसरे सपने में उसने देखा कि सूरज, चाँद और 11 तारे उसकी ओर झुककर प्रणाम कर रहे हैं।
यूसुफ़ ने जब ये सपने अपने भाइयों और पिता को बताए तो भाइयों को और भी गुस्सा आया। उन्हें लगा कि यूसुफ़ घमंडी है और यह सोचता है कि एक दिन वह उन सब पर राज्य करेगा भाइयों की ईर्ष्या अब नफ़रत में बदल रही थी। वे उसे अपने बीच नहीं देखना चाहते थे।

👉 इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि जब परमेश्वर किसी के जीवन के लिए बड़ी योजना बनाता है तो अक्सर लोग उसे समझ नहीं पाते और विरोध करने लगते हैं।
भाइयों की जलन और गुलाम बनकर मिस्र जाना
भाइयों की साज़िश
यूसुफ़ के सपनों ने भाइयों के मन में आग लगा दी थी। वे सोचने लगे – “क्या सच में यह लड़का हम पर राज्य करेगा? क्या हम सब इसे प्रणाम करेंगे?”।
एक दिन जब यूसुफ़ अपने भाइयों से मिलने खेतों की ओर आया तो उन्होंने उसे दूर से ही देख लिया। भाइयों ने आपस में कहा –
“देखो, सपना देखने वाला आ रहा है। आओ इसे मार डालें और कह देंगे कि इसे किसी जंगली जानवर ने खा लिया।”
उनकी योजना खतरनाक थी, लेकिन बड़े भाई रूबेन ने कहा – “इसे मत मारो, बस इसे किसी गड्ढे में डाल दो।”
उसका इरादा था कि बाद में वह यूसुफ़ को बचाकर पिता के पास लौटा देगा।
गड्ढे में डाला गया

जैसे ही यूसुफ़ अपने भाइयों तक पहुँचा, उन्होंने उसका रंग-बिरंगा वस्त्र उतार लिया और उसे एक गहरे गड्ढे में डाल दिया। उस समय यूसुफ़ कितना डरा होगा – सोचना भी कठिन है। भाई वहीं बैठकर भोजन करने लगे और उन्होंने उसकी चीखें तक अनसुनी कर दीं।
👉 यह दृश्य हमें दिखाता है कि ईर्ष्या और जलन इंसान के दिल को इतना कठोर बना देती है कि वह अपने ही खून के रिश्ते को भूल जाता है।
यूसुफ़ को बेचा गया
उसी समय इस्माएलियों का एक काफ़िला गुज़र रहा था जो मिस्र की ओर जा रहा था। भाइयों ने सोचा – “आओ, इसे मारने से क्या फ़ायदा? क्यों न इसे बेच दें?”उन्होंने यूसुफ़ को बीस चाँदी के सिक्कों में इस्माएलियों को बेच दिया।
अब एक सत्रह साल का लड़का, जो पिता का लाडला था, गुलाम बनकर एक अजनबी देश मिस्र की ओर जा रहा था।
पिता याकूब को धोखा
भाइयों ने यूसुफ़ का वह रंग-बिरंगा वस्त्र लिया और उसे बकरी के खून में डुबो दिया। फिर उन्होंने वह वस्त्र पिता याकूब को दिखाया और कहा –
“देखो, शायद किसी जंगली जानवर ने यूसुफ़ को खा लिया।” यह सुनकर याकूब का हृदय टूट गया। उसने अपने बेटे के लिए कई दिन शोक मनाया और किसी ने उसे सांत्वना नहीं दी।
👉 इस घटना से हमें यह गहरी सीख मिलती है कि जब परमेश्वर की योजना बड़ी होती है तो अक्सर रास्ता दर्द और कठिनाइयों से होकर जाता है। यूसुफ़ को यह सब सहना पड़ा, लेकिन परमेश्वर उसके साथ था।
पोटीफर के घर में सेवा और झूठा आरोप
मिस्र में यूसुफ़ का नया जीवन
जब व्यापारी यूसुफ़ को मिस्र लेकर पहुँचे तो उन्होंने उसे फ़िरौन के अधिकारी पोटीफर को बेच दिया। पोटीफर राजा का अंगरक्षक और एक सम्मानित व्यक्ति था। गुलाम बनकर नए देश में पहुँचना किसी भी जवान लड़के के लिए डर और निराशा की बात होती। लेकिन यूसुफ़ हार नहीं मानता। वह हर काम को निष्ठा और ईमानदारी से करता।
बाइबल बताती है –
“यहोवा यूसुफ़ के साथ था, और जो कुछ वह करता था उसमें उसे सफलता मिलती थी।” (उत्पत्ति 39:2)
परमेश्वर की आशीष
पोटीफर ने देखा कि यूसुफ़ पर परमेश्वर की कृपा है। इसलिए उसने यूसुफ़ को अपने पूरे घर की ज़िम्मेदारी दे दी। जो भी काम यूसुफ़ संभालता, उसमें बरकत होती।
👉 यह हमें याद दिलाता है कि जब हम ईमानदारी और विश्वास के साथ काम करते हैं तो लोग भी हमारे जीवन में परमेश्वर की उपस्थिति को महसूस कर सकते हैं।
पोटीफर की पत्नी का प्रलोभन
लेकिन वहाँ एक कठिनाई आई। पोटीफर की पत्नी ने यूसुफ़ को गलत राह पर ले जाने की कोशिश की। उसने कई बार यूसुफ़ से कहा कि वह उसके साथ पाप करे।
लेकिन यूसुफ़ ने हर बार इनकार कर दिया और कहा –
“मैं यह बड़ी बुराई कैसे करूँ और परमेश्वर के विरुद्ध पाप कैसे करूँ?” (उत्पत्ति 39:9)
उसका यह उत्तर दिखाता है कि वह सिर्फ़ इंसानों से नहीं, बल्कि परमेश्वर से भी डरता था।
झूठा आरोप और जेल
एक दिन जब घर में कोई नहीं था, पोटीफर की पत्नी ने यूसुफ़ का वस्त्र पकड़ लिया। यूसुफ़ तुरंत वहाँ से भाग गया, लेकिन उसका वस्त्र उसके हाथ में रह गया।
उसने इस बात को झूठा मोड़ दिया और चिल्लाकर कहा कि यूसुफ़ ने उसे परेशान किया।
जब पोटीफर ने यह सुना तो वह क्रोधित हुआ और उसने यूसुफ़ को जेल में डाल दिया।
👉 सोचो भाई, एक ऐसा व्यक्ति जो ईमानदारी से काम कर रहा था, जिसे परमेश्वर आशीष दे रहा था – वह अचानक जेल में पहुँच गया। यह बहुत बड़ा अन्याय था।
लेकिन यहाँ भी सच्चाई यह थी कि परमेश्वर यूसुफ़ के साथ था। यूसुफ़ को यह सबक सीखना पड़ा कि जीवन में कभी-कभी सही होते हुए भी हमें गलत समझा जा सकता है।
जेल में परमेश्वर की कृपा और सपनों का अर्थ बताना
जेल में यूसुफ़
पोटीफर की पत्नी के झूठे आरोप के कारण यूसुफ़ को जेल में डाल दिया गया।
सोचो, एक जवान लड़का जिसने कोई गलती नहीं की थी, उसे कैदियों के बीच रहना पड़ा। लेकिन फिर भी उसने हार नहीं मानी।
बाइबल कहती है –
“यहोवा यूसुफ़ के साथ था और उसे कृपा दी, और जेल के अधिकारी की दृष्टि में उसे अनुग्रह मिला।” (उत्पत्ति 39:21)
जेल का अधिकारी यूसुफ़ से इतना प्रभावित हुआ कि उसने सारे कैदियों की ज़िम्मेदारी उसी को सौंप दी। जहाँ यूसुफ़ होता था, वहाँ परमेश्वर की आशीष उतरती थी।
दो बंदियों के सपने
कुछ समय बाद फ़िरौन के दो सेवक – पीनेवाला (cupbearer) और रसोइया (chief baker) – अपराध के कारण जेल में डाले गए।
एक रात दोनों ने अजीब सपने देखे। वे बहुत परेशान थे क्योंकि कोई भी उनका अर्थ नहीं समझा पा रहा था।
यूसुफ़ ने उनसे कहा –
“क्या अर्थ बताना परमेश्वर का काम नहीं है? अपने सपने मुझे सुनाओ।”
सपनों का अर्थ

पीनेवाले का सपना: उसने देखा कि बेल पर तीन डालियाँ हैं, जिनसे अंगूर निकले और उसने उन्हें निचोड़कर फ़िरौन के प्याले में दिया।
👉 यूसुफ़ ने कहा – “तीन दिन के भीतर फ़िरौन तुझे तेरे पद पर लौटा देगा।”
रसोइये का सपना: उसने देखा कि उसके सिर पर तीन टोकरियाँ हैं और उनमें से पक्षी रोटियाँ खा रहे हैं।
👉 यूसुफ़ ने कहा – “तीन दिन के भीतर तेरा सिर काटा जाएगा और तुझे फाँसी पर लटकाया जाएगा।”
तीन दिन बाद ठीक वैसा ही हुआ जैसा यूसुफ़ ने बताया था।
भुला दिया गया
यूसुफ़ ने पीनेवाले से कहा था – “जब तू अपने पद पर लौटे तो मुझे याद करना और मेरी मदद करना ताकि मैं इस जेल से निकल सकूँ।”
लेकिन जैसे ही वह आज़ाद हुआ, उसने यूसुफ़ को पूरी तरह भुला दिया यूसुफ़ को और दो साल तक जेल में रहना पड़ा।
👉 इस घटना से हमें यह सिखाई मिलती है कि लोग हमें भूल सकते हैं, लेकिन परमेश्वर कभी हमें नहीं भूलता।
यूसुफ़ जेल में अकेला नहीं था – परमेश्वर की उपस्थिति उसके साथ थी और वही उसकी ताक़त थी।
फ़िरौन के सपनों का अर्थ और राज्यपाल बनना
फ़िरौन के अजीब सपने
दो साल बीत गए और यूसुफ़ अब भी जेल में था। लेकिन परमेश्वर की योजना अलग थी।
एक रात मिस्र के राजा फ़िरौन ने दो अजीब सपने देखे –
- उसने देखा कि नील नदी से सात मोटी और स्वस्थ गायें निकलकर घास चर रही हैं।
उनके बाद सात दुबली और बीमार गायें आईं और मोटी गायों को खा गईं। - फिर उसने देखा कि खेत में सात मोटे और भरे हुए बालें (धान/गेहूँ) उगीं।
लेकिन उनके बाद सात पतली और सुखी बालें आईं और अच्छी बालों को निगल गईं।
फ़िरौन बहुत परेशान हो गया। उसने अपने सभी ज्योतिषियों और विद्वानों को बुलाया, पर कोई भी सपनों का अर्थ नहीं बता पाया।
यूसुफ़ का बुलावा
तभी पीनेवाले को याद आया कि जेल में एक हिब्रानी युवक ने उसके सपने का अर्थ सही बताया था। उसने फ़िरौन से कहा –
“महाराज, जेल में एक युवक है जो सपनों का सही अर्थ बता सकता है।”
तुरंत यूसुफ़ को जेल से बाहर बुलाया गया। उसने नहा-धोकर और कपड़े बदलकर फ़िरौन के सामने उपस्थिति दी।
यूसुफ़ का उत्तर
फ़िरौन ने यूसुफ़ से कहा – “मैंने सुना है कि तू सपनों का अर्थ बता सकता है।”
यूसुफ़ ने विनम्रता से उत्तर दिया –
“यह मेरी शक्ति नहीं, बल्कि परमेश्वर है जो फ़िरौन को शांति का उत्तर देगा।” (उत्पत्ति 41:16)
सपनों का अर्थ

यूसुफ़ ने समझाया –
- सात मोटी गायें और सात भरी हुई बालें → सात साल की बहुतायत (समृद्धि)
- सात दुबली गायें और सात पतली बालें → सात साल का भयंकर अकाल
अर्थ यह था कि पहले मिस्र में सात साल खूब अनाज पैदा होगा, लेकिन उसके बाद सात साल अकाल पड़ेगा और लोग भूखे मरने लगेंगे।
यूसुफ़ की सलाह
यूसुफ़ ने फ़िरौन को सलाह दी –
“सात साल की बहुतायत में अन्न का भंडारण करो ताकि अकाल के वर्षों में लोगों को अनाज मिल सके।”
यूसुफ़ राज्यपाल बना
फ़िरौन यूसुफ़ की बुद्धि और समझ देखकर हैरान रह गया। उसने कहा –
“क्या ऐसा कोई और व्यक्ति मिल सकता है जिसमें परमेश्वर का आत्मा हो?”
तुरंत यूसुफ़ को मिस्र का राज्यपाल बना दिया गया। उसे राजा की अंगूठी, सोने की जंजीर और राजकीय वस्त्र पहनाए गए अब यूसुफ़ जेल से सीधे मिस्र के दूसरे सबसे बड़े पद पर पहुँच गया।
👉 यह हमें सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, यदि हम परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं तो वह हमें सही समय पर ऊँचाई तक ले जाता है।
अकाल का समय और भाइयों से पहली मुलाक़ात
सात साल की बहुतायत
जैसा यूसुफ़ ने बताया था, मिस्र में सात साल तक अनाज की भरपूर फसल हुई।
राज्यपाल के रूप में यूसुफ़ ने हर शहर में अन्न के गोदाम बनवाए और खूब भंडारण किया।
इतना अनाज इकट्ठा किया गया कि उसकी गिनती करना भी असंभव हो गया।
अकाल की शुरुआत
लेकिन सात साल बाद वही हुआ जो परमेश्वर ने पहले ही प्रकट कर दिया था।
पूरे मिस्र और आसपास के देशों में भयंकर अकाल पड़ गया लोगों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा।
तब मिस्र के लोग फ़िरौन से अनाज माँगने आए, और फ़िरौन ने कहा –
“यूसुफ़ के पास जाओ, वही तुम्हें बताएगा क्या करना है।”
इस तरह यूसुफ़ ने गोदाम खोलकर मिस्र के लोगों को अनाज बेचना शुरू किया दूर-दूर से लोग भी मिस्र आने लगे, क्योंकि सिर्फ वहीं अन्न उपलब्ध था।
यूसुफ़ के भाइयों की यात्रा
याकूब (यूसुफ़ का पिता) कनान देश में रहता था। जब उसने सुना कि मिस्र में अनाज मिल रहा है, तो उसने अपने दस बेटों को भेजा (सबसे छोटे बेंजामिन को नहीं भेजा)।
वे मिस्र पहुँचे और यूसुफ़ के सामने झुककर प्रणाम किया। यही वह समय था जब यूसुफ़ का बचपन का सपना पूरा हो रहा था – उसके भाई उसके सामने झुक रहे थे।
पहचान और परीक्षा
यूसुफ़ ने अपने भाइयों को तुरंत पहचान लिया, लेकिन उन्होंने यूसुफ़ को नहीं पहचाना।
वह अब मिस्र का बड़ा अधिकारी था, राजकीय वस्त्र पहने हुए, और उसकी भाषा भी अलग थी।
यूसुफ़ ने उनसे सख़्ती से पूछा –
“तुम कौन हो और कहाँ से आए हो?”
भाइयों ने उत्तर दिया – “हम कनान देश से अन्न खरीदने आए हैं।”
यूसुफ़ ने उन्हें परखने के लिए जासूस कहा और कैद में डाल दिया।
तीन दिन बाद उसने कहा –
“अगर तुम सच्चे हो तो अपने सबसे छोटे भाई (बेंजामिन) को मेरे पास लेकर आओ। तब मैं मानूँगा कि तुम जासूस नहीं हो।”
जब वे कैद में थे, भाइयों ने आपस में बातें कीं –
“हमने यूसुफ़ के साथ जो किया, यह उसी का फल है।”
रूबेन ने कहा –
“मैंने तुमसे कहा था कि लड़के को नुकसान मत पहुँचाओ, लेकिन तुमने नहीं सुनी। अब हमें उसके खून का बदला चुकाना पड़ रहा है।”उन्हें पता नहीं था कि यूसुफ़ उनकी भाषा समझता है यह सुनकर यूसुफ़ की आँखों में आँसू आ गए, और वह थोड़ी देर के लिए अलग चला गया।
शिमोन को कैद
यूसुफ़ ने एक भाई, शिमोन, को कैद में रखा और बाकी को अनाज देकर वापस भेज दिया।
साथ ही उनके बोरे में गुप्त रूप से उनका चाँदी का मूल्य भी रखवा दिया, ताकि लौटते समय उन्हें और गहरी सोच आए।
👉 इस तरह यूसुफ़ ने अपने भाइयों की परीक्षा ली। वह जानना चाहता था कि क्या वे पहले जैसे ही हैं या बदल चुके हैं।
खुद को प्रकट करना और परिवार को मिस्र बुलाना
भाइयों की दूसरी यात्रा
जब कनान देश में अनाज खत्म हो गया, तो याकूब ने अपने बेटों को फिर से मिस्र भेजा इस बार उन्होंने बेंजामिन को भी साथ जाने दिया, क्योंकि यूसुफ़ ने शर्त रखी थी।
भाई फिर मिस्र पहुँचे और यूसुफ़ के सामने खड़े हुए यूसुफ़ ने बेंजामिन को देखकर मन ही मन बहुत प्रसन्नता पाई, लेकिन वह अपने भावों को छुपाए रहा।
विशेष दावत
यूसुफ़ ने अपने भाइयों के लिए एक विशेष भोज तैयार करवाया।
उसने बेंजामिन को बाकी सबकी तुलना में पाँच गुना अधिक भोजन दिया।
भाइयों को अब भी समझ नहीं आ रहा था कि यह मिस्र का राज्यपाल कौन है और उनके साथ इतना अलग व्यवहार क्यों कर रहा है।
अंतिम परीक्षा
यूसुफ़ ने एक योजना बनाई ताकि वह अपने भाइयों की सच्चाई जाँच सके।
उसने अपने सेवकों से कहा कि बेंजामिन के बोरे में चाँदी का प्याला छुपा दें।
जब भाई अनाज लेकर लौट रहे थे, तो थोड़ी ही दूरी पर सैनिकों ने उन्हें रोककर बोरे जाँचें।
बेंजामिन के बोरे से प्याला निकला और सब हैरान रह गए।
भाइयों का दिल टूट गया, क्योंकि अब बेंजामिन को दास बना लिया जाना था।
उन्होंने रोते हुए कहा –
“हम सब आपके दास बनेंगे, बस हमारे भाई को छोड़ दीजिए।”
यूसुफ़ ने देखा कि अब वे पहले जैसे नहीं रहे। अब उनमें भाईचारे का प्रेम था और वे छोटे भाई के लिए बलिदान देने को तैयार थे।
यूसुफ़ ने खुद को प्रकट किया
अब यूसुफ़ अपने आँसू रोक नहीं पाया। उसने सबको बाहर जाने को कहा और रोते हुए अपने भाइयों से कहा –
“मैं यूसुफ़ हूँ, तुम्हारा भाई, जिसे तुमने मिस्र बेच दिया था। घबराओ मत, क्योंकि परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे जीवन बचाने के लिए यहाँ भेजा है।”
भाई स्तब्ध रह गए, लेकिन यूसुफ़ ने उन्हें गले लगाया और रोते हुए क्षमा कर दिया।
उसने कहा – “तुमने बुराई करना चाहा, पर परमेश्वर ने उसे भलाई में बदल दिया।”

परिवार को मिस्र बुलाना
यूसुफ़ ने फ़िरौन को सब बताया। फ़िरौन ने खुशी-खुशी याकूब और पूरे परिवार को मिस्र में बसने का निमंत्रण दिया। भाई घर लौटे और अपने पिता याकूब को समाचार सुनाया – “यूसुफ़ जीवित है और अब मिस्र का राज्यपाल है!”
याकूब पहले विश्वास नहीं कर सका, लेकिन जब उसने सब प्रमाण देखे, तो उसका मन हर्ष से भर गया। फिर पूरा परिवार मिस्र चला आया और गोशेन नामक भूमि में बस गया।
👉 इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि क्षमा सबसे बड़ी शक्ति है। यूसुफ़ ने बदला नहीं लिया, बल्कि अपने भाइयों को गले लगाया और उनके लिए आशीष का कारण बना।
याकूब का आशीर्वाद, मृत्यु और यूसुफ़ का अंतिम समय
याकूब का मिस्र में आगमन
जब याकूब ने सुना कि उसका प्रिय बेटा यूसुफ़ जीवित है, तो उसका मन खुशी और आभार से भर गया।
वह अपने पूरे परिवार के साथ मिस्र चला गया मिस्र की भूमि गोशेन में उन्हें बसाया गया और वहाँ वे आराम से रहने लगे।
याकूब का आशीर्वाद
याकूब अब वृद्ध हो चुका था। उसने अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने बेटों को बुलाया और हर एक को आशीर्वाद दिया।
उसने यूसुफ़ के दो पुत्रों, एप्रैम और मनश्शे, को भी आशीर्वाद दिया और उन्हें अपनी संतान के समान स्थान दिया।
फिर याकूब ने अपने सभी बेटों को एक-एक करके आशीष दी और उनके भविष्य के बारे में भविष्यवाणी की उसके शब्द आज भी बाइबल में दर्ज हैं और हर जनजाति के भविष्य को दर्शाते हैं।
याकूब की मृत्यु और दफ़न
आशीर्वाद देने के बाद याकूब ने अपने प्राण परमेश्वर को सौंप दिए यूसुफ़ ने अपने पिता के शरीर का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार किया और उसे कनान देश में, मक्पेलाह की गुफा में दफ़नाया जहाँ अब्राहम और इसहाक भी दफ़न थे।
भाइयों का डर और यूसुफ़ की क्षमा
याकूब की मृत्यु के बाद यूसुफ़ के भाइयों को डर हुआ –
“अब यूसुफ़ हमसे बदला ले सकता है।”
उन्होंने यूसुफ़ के सामने झुककर कहा –“हम तेरे दास हैं, हमें क्षमा कर दे।”
लेकिन यूसुफ़ ने रोते हुए उत्तर दिया –
“तुमने मेरे साथ बुरा करना चाहा था, लेकिन परमेश्वर ने उसे भलाई में बदल दिया ताकि बहुत से लोगों का जीवन बच सके। इसलिए मत डरो, मैं तुम्हारी और तुम्हारे बच्चों की देखभाल करूँगा।” यूसुफ़ ने अपने भाइयों को पूरी तरह क्षमा कर दिया और उनके साथ प्रेम से रहा।
यूसुफ़ का अंतिम समय
यूसुफ़ ने मिस्र में लंबा जीवन जिया।
उसने अपने बच्चों और पोतों को देखा और अंत समय में अपने भाइयों से कहा – “परमेश्वर अवश्य तुम्हारी सुधि लेगा और तुम्हें इस देश से निकालकर उस भूमि में ले जाएगा, जिसका वादा उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब से किया है।”
मृत्यु से पहले उसने अपनी हड्डियाँ कनान देश ले जाने की इच्छा व्यक्त की।
उसकी यह बात इस्राएलियों को हमेशा याद रही और जब वे मिस्र से निकले, तो यूसुफ़ की हड्डियाँ भी साथ ले गए।
✨ यूसुफ़ की कहानी से जीवन में सीख
यूसुफ़ की कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, विश्वास, धैर्य और परमेश्वर पर भरोसा रखने से हर अंधेरा एक नई सुबह में बदल सकता है। यूसुफ़ को उसके अपने भाइयों ने धोखा दिया, गड्ढे में डाला, और गुलाम बनाकर बेच दिया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह हर स्थिति में सच्चाई, ईमानदारी और मेहनत पर डटा रहा।
परमेश्वर की योजना हमेशा हमारी सोच से बड़ी होती है, और यूसुफ़ का जीवन इसका सबसे सुंदर उदाहरण है। विपरीत परिस्थितियों में भी जब हम धैर्य रखते हैं, तो अंत में हमें वही मिलता है जो हमारे लिए सबसे अच्छा है। क्षमा करना, विश्वास बनाए रखना और परमेश्वर की इच्छा को स्वीकार करना ही जीवन की असली जीत है।
यूसुफ़ की कहानी से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर (FAQ)
यूसुफ़ कौन था?
यूसुफ़ याकूब और राहेल का बेटा था। वह अपने पिता का सबसे प्रिय पुत्र था और परमेश्वर ने उसके जीवन के लिए एक विशेष योजना बनाई थी। उसकी कहानी विश्वास, धैर्य और क्षमा का सुंदर उदाहरण है।
यूसुफ़ की कहानी बाइबल में कहाँ मिलती है?
यूसुफ़ की पूरी कहानी बाइबल की पुस्तक उत्पत्ति (Genesis) के अध्याय 37 से 50 तक लिखी गई है। इसमें उसके बचपन से लेकर मिस्र में राज्यपाल बनने तक की यात्रा का वर्णन है।
यूसुफ़ को विशेष क्यों माना जाता था?
यूसुफ़ को उसके पिता ने रंग-बिरंगा वस्त्र दिया और उससे अत्यधिक प्रेम किया। साथ ही, यूसुफ़ को परमेश्वर से सपने और दर्शन मिलते थे, जिससे उसके जीवन का उद्देश्य प्रकट होता था।
यूसुफ़ के सपनों का क्या अर्थ था?
यूसुफ़ ने ऐसे सपने देखे जिनमें उसके भाई और परिवारजन उसके सामने झुक रहे थे। इनका अर्थ था कि भविष्य में परमेश्वर उसे एक बड़े पद पर बैठाएगा और उसका परिवार उसकी देखरेख में होगा।
यूसुफ़ के भाइयों ने उसे क्यों बेच दिया?
भाइयों को उससे जलन थी क्योंकि उसके पिता उसे सबसे अधिक मानते थे और उसके सपनों से वे नाराज़ थे। इसी कारण उन्होंने उसे गड्ढे में डालकर इस्माएलियों को 20 चाँदी के सिक्कों में बेच दिया।
यूसुफ़ मिस्र में किसके घर गया?
यूसुफ़ को मिस्र में पोटीफर नामक अधिकारी को बेचा गया। पोटीफर फ़िरौन का अंगरक्षक था। वहाँ यूसुफ़ ने मेहनत और ईमानदारी से सेवा की और पोटीफर के घर का जिम्मेदार बना।
पोटीफर की पत्नी ने यूसुफ़ पर क्या आरोप लगाया?
पोटीफर की पत्नी ने यूसुफ़ पर झूठा आरोप लगाया कि उसने उसके साथ पाप करने की कोशिश की। जबकि यूसुफ़ परमेश्वर के भय से दूर भागा था। इस झूठे आरोप के कारण उसे जेल में डाल दिया गया।
यूसुफ़ जेल में क्यों गया?
यूसुफ़ जेल इसलिए गया क्योंकि पोटीफर की पत्नी ने उस पर झूठा दोष लगाया। लेकिन जेल में भी परमेश्वर उसके साथ था और वहाँ उसे कृपा मिली। उसने कैदियों के सपनों का सही अर्थ बताया।
यूसुफ़ ने जेल में किसके सपनों का अर्थ बताया?
यूसुफ़ ने राजा के प्यालेदार और रसोइए के सपनों का सही अर्थ बताया। उसने बताया कि प्यालेदार फिर से राजा की सेवा में लौटेगा और रसोइए को दंड मिलेगा। सब कुछ वैसा ही हुआ।
फ़िरौन ने यूसुफ़ को क्यों बुलाया?
जब फ़िरौन को अजीब सपने आए और कोई उनका अर्थ नहीं बता सका, तो प्यालेदार को यूसुफ़ याद आया। फ़िरौन ने उसे बुलाया और यूसुफ़ ने परमेश्वर की सामर्थ्य से सपनों की सही व्याख्या की।
फ़िरौन के सपनों का क्या अर्थ था?
फ़िरौन ने सात मोटी और सात दुबली गायों का सपना देखा। यूसुफ़ ने समझाया कि यह सात साल की बहुतायत और सात साल के अकाल का संकेत है। परमेश्वर ने मिस्र को पहले से चेतावनी दी थी।
यूसुफ़ ने अकाल से बचने के लिए क्या योजना बनाई?
यूसुफ़ ने कहा कि सात साल की बहुतायत में अनाज इकट्ठा किया जाए, ताकि अकाल के सात सालों में सबकी भूख मिट सके। उसकी बुद्धिमानी से मिस्र और आसपास के देशों को बचाया गया।
यूसुफ़ को मिस्र में कौन-सा पद मिला?
फ़िरौन ने यूसुफ़ को मिस्र का प्रधान या राज्यपाल बनाया। वह फ़िरौन के बाद सबसे बड़ा अधिकारी था और पूरे देश के अनाज और व्यवस्था की जिम्मेदारी उसी के हाथों में दी गई।
यूसुफ़ की शादी किससे हुई?
यूसुफ़ की शादी आसनाथ नामक स्त्री से हुई, जो मिस्र के पूजारी पोतीफेरा की बेटी थी। उनके दो पुत्र हुए – मनश्शे और एप्रैम, जिन्हें बाद में इस्राएल की गोत्रों में स्थान मिला।
यूसुफ़ के कितने बच्चे थे?
यूसुफ़ के दो पुत्र थे – मनश्शे और एप्रैम। याकूब ने मरते समय इन दोनों को आशीर्वाद दिया और उन्हें अपने पुत्रों के समान मानकर इस्राएल की बारह गोत्रों में शामिल किया।
अकाल के समय यूसुफ़ के भाई मिस्र क्यों आए?
जब कनान देश में अकाल पड़ा, तो यूसुफ़ के भाई अनाज खरीदने मिस्र आए। वे नहीं जानते थे कि अनाज बाँटने वाला वही यूसुफ़ है जिसे उन्होंने सालों पहले बेच दिया था।
क्या यूसुफ़ ने अपने भाइयों को तुरंत पहचान लिया?
हाँ, यूसुफ़ ने उन्हें तुरंत पहचान लिया, लेकिन भाइयों ने उसे नहीं पहचाना। उसने उन्हें परखने के लिए कुछ परीक्षा ली और बाद में अपनी पहचान प्रकट की।
यूसुफ़ ने अपने भाइयों को क्यों क्षमा किया?
यूसुफ़ ने भाइयों को क्षमा किया क्योंकि वह समझ गया था कि उनकी बुराई को भी परमेश्वर ने भलाई में बदल दिया। उसने कहा – “तुमने बुरा सोचा, परन्तु परमेश्वर ने भलाई के लिए किया।”
यूसुफ़ ने अपने पिता याकूब को मिस्र क्यों बुलाया?
अकाल बहुत बड़ा था, इसलिए यूसुफ़ ने अपने पिता और पूरे परिवार को मिस्र बुलाया। इस तरह इस्राएल का परिवार मिस्र में बस गया और वहीं से आगे की बाइबल की कहानी आगे बढ़ी।
यूसुफ़ का अंत कैसे हुआ?
यूसुफ़ 110 वर्ष की आयु तक जीवित रहा। उसने अपने परिवार को आशीर्वाद दिया और मरते समय कहा कि उसकी हड्डियाँ कनान देश में ले जाई जाएँ। बाद में मूसा ने यह वचन पूरा किया।