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याकूब और एसाव की कहानी – बाइबल से जीवन बदलने वाले सबक

प्रस्तावना 🌿

बाइबिल केवल कहानियों की पुस्तक नहीं है, बल्कि यह परमेश्वर के वचनों, उनकी प्रतिज्ञाओं और उनकी योजनाओं का जीवित साक्ष्य है। हर एक पात्र, हर घटना हमें एक गहरी सीख देती है।
आज हम पढ़ेंगे इसहाक (Isaac) के परिवार, उनके दो पुत्रों याकूब (Jacob) और एसाव (Esau) की अद्भुत कहानी।

यह कहानी केवल दो भाइयों की नहीं है, बल्कि इसमें विश्वास, प्रार्थना, प्रेम, प्रतिज्ञा, धोखा, संघर्ष, और क्षमा की झलक मिलती है।
हम शुरुआत करेंगे इसहाक के जीवन के संक्षिप्त परिचय से, और फिर धीरे-धीरे याकूब और एसाव की गहराई से कहानी को समझेंगे।

इसहाक का संक्षिप्त परिचय (Isaac’s Short Introduction)

इसहाक, महान विश्वास के पिता अब्राहम और सारा के पुत्र थे। उनका जन्म तब हुआ जब अब्राहम और सारा दोनों ही वृद्धावस्था में थे। यह केवल एक साधारण जन्म नहीं था — यह परमेश्वर की प्रतिज्ञा का चमत्कार था (उत्पत्ति 21)।

जब इसहाक बड़े हुए, तो अब्राहम ने उनके लिए एक योग्य पत्नी ढूँढने के लिए अपने सेवक को भेजा। सेवक ने परमेश्वर से प्रार्थना की और रिबका (Rebekah) से मुलाकात हुई। यह विवाह परमेश्वर की योजना का हिस्सा था।

इसहाक और रिबका का जीवन सरल और प्रार्थनाशील था। कई साल तक रिबका संतानहीन रहीं, लेकिन इसहाक ने हार नहीं मानी। उन्होंने परमेश्वर से प्रार्थना की और अंततः परमेश्वर ने उन्हें दो जुड़वाँ पुत्रों का आशीर्वाद दिया — एसाव और याकूब।
यहीं से हमारी कहानी की नींव रखी जाती है।

याकूब और एसाव का जन्म 👶

बाइबल के उत्पत्ति ग्रंथ (Genesis 25:19-28) में याकूब और एसाव के जन्म की कथा बहुत अद्भुत और गहरी है। इस कहानी की शुरुआत उनके माता-पिता, इसहाक (Isaac) और रिबका (Rebekah) से होती है। इसहाक, अब्राहम का पुत्र था और परमेश्वर ने अब्राहम से वादा किया था कि उसकी संतानों से एक महान राष्ट्र उत्पन्न होगा। लेकिन शादी के कई साल बाद भी रिबका संतानहीन थी। इस कारण इसहाक ने पूरे मन से प्रभु से प्रार्थना की, और परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली।

जब रिबका गर्भवती हुई, तो उसे गर्भ में ही अजीब हलचल महसूस होने लगी। ऐसा लगता था मानो उसके गर्भ में बच्चे आपस में संघर्ष कर रहे हों। रिबका ने यह बात परमेश्वर से पूछी, और प्रभु ने उससे कहा:
“तेरे गर्भ में दो राष्ट्र हैं; और तेरे भीतर से दो जातियाँ अलग होंगी। एक जाति दूसरी जाति से अधिक शक्तिशाली होगी, और बड़ा छोटे की सेवा करेगा।”
(उत्पत्ति 25:23)

समय पूरा हुआ और रिबका ने जुड़वाँ पुत्रों को जन्म दिया। पहला पुत्र एसाव पैदा हुआ। वह लाल और रोएँदार था, इसलिए उसका नाम एसाव रखा गया। उसके थोड़ी ही देर बाद दूसरा बच्चा निकला, और वह अपने भाई एसाव की एड़ी पकड़े हुए था। इसलिए उसका नाम याकूब रखा गया, जिसका अर्थ है – “एड़ी पकड़ने वाला” या “स्थान लेने वाला।”

यह जन्म कोई साधारण जन्म नहीं था, बल्कि परमेश्वर की योजना का हिस्सा था। यहाँ से ही यह संकेत मिल गया था कि इन दोनों भाइयों की कहानी साधारण नहीं होगी। एसाव बड़ा होकर एक बलवान, शिकारी और खुले मैदानों का आदमी बना और अपने पिता इसहाक का प्रिय था। जबकि याकूब शांत स्वभाव का घर पर रहने वाला, और अपनी माँ रिबका का प्रिय था वह तंबुओं में रहना पसंद करता था।

इस तरह याकूब और एसाव के जन्म ने आने वाले भविष्य की नींव रखी, जिसमें संघर्ष, धोखा, मेल-मिलाप और परमेश्वर की योजना सब शामिल थे।

एसाव का जन्मसिद्ध अधिकार बेचना

याकूब और एसाव बड़े हो रहे थे। एसाव एक ताक़तवर शिकारी था, जिसे जंगल और शिकार करना बहुत पसंद था। दूसरी ओर याकूब शांत स्वभाव का था और घर के कामों तथा पकवान बनाने में निपुण था। दोनों के स्वभाव में ज़मीन-आसमान का फ़र्क था।

एक दिन की घटना ने उनकी पूरी ज़िंदगी बदल दी। बाइबल बताती है कि एसाव शिकार करके बहुत थक कर घर लौटा। वह भूख से व्याकुल था और लगभग गिर पड़ने की हालत में था। उसी समय याकूब दाल (लाल मसूर की खिचड़ी) पका रहा था। एसाव ने अपने भाई से कहा:
“मुझे यह लाल-लाल पकवान खाने दे, क्योंकि मैं भूखा और थका हुआ हूँ।” (उत्पत्ति 25:30)

याकूब ने तुरंत एक शर्त रखी। उसने कहा:
“पहले अपना जन्मसिद्ध अधिकार मुझे बेच दे।” (उत्पत्ति 25:31)

यह बात सुनकर लगता है कि याकूब बहुत चतुराई से काम ले रहा था। जन्मसिद्ध अधिकार (Birthright) उस समय बहुत महत्वपूर्ण था। इसका मतलब था – परिवार का नेतृत्व, दोगुना हिस्सा विरासत में पाना और सबसे बड़ी बात, परमेश्वर का विशेष आशीर्वाद।

लेकिन एसाव ने भूख और थकान में अपना विवेक खो दिया। उसने कहा:
“देख, मैं तो मर ही रहा हूँ, मुझे जन्मसिद्ध अधिकार से क्या लाभ?” (उत्पत्ति 25:32)

तब याकूब ने उससे शपथ दिलवाई और एसाव ने अपने जन्मसिद्ध अधिकार को दाल के बदले बेच डाला। इस प्रकार उसने परमेश्वर के दिए हुए आशीर्वाद और वादे को हल्के में ले लिया और उसने अपना जन्म-अधिकार याकूब को दे दिया।

बाइबल इस घटना के बारे में कहती है कि एसाव ने अपने जन्मसिद्ध अधिकार को तुच्छ जाना (उत्पत्ति 25:34)। यह केवल एक साधारण लेन-देन नहीं था, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक सीख थी।

👉 यह घटना हमें सिखाती है कि कभी-कभी लोग थोड़े समय की भूख, इच्छाओं या लालच के कारण अपनी बड़ी आशीषों और भविष्य को खो देते हैं। इसिलिये हमे क्षणिक सुख के लिए परमेश्वर की आशीष को कभी नहीं बेचना चाहिए।

इसहाक का आशीर्वाद और याकूब का भागना 😔

जैसे-जैसे समय बीता, इसहाक बूढ़ा और कमजोर हो गया। उसकी आँखें धुंधली हो गई थीं और वह सही से देख नहीं पाता था। बाइबल बताती है कि उसने सोचा कि अब उसका जीवन अधिक नहीं बचा है, इसलिए उसने अपने बड़े बेटे एसाव को बुलाया और कहा:

“बेटा, तू बाहर जा और शिकार कर। मेरे लिए स्वादिष्ट पकवान बना कर ला, ताकि मैं उसे खाकर तुझे अपने मरने से पहले आशीर्वाद दूँ।” (उत्पत्ति 27:3-4)

यह सुनकर रिबका (याकूब और एसाव की माँ) चिंतित हो गई। उसे याद था कि परमेश्वर ने पहले ही कहा था – “बड़ा छोटे की सेवा करेगा।” रिबका चाहती थी कि आशीर्वाद याकूब को मिले। इसलिए उसने तुरंत योजना बनाई।

उसने याकूब से कहा कि जल्दी से दो अच्छे बकरे ले आओ। उसने खुद स्वादिष्ट पकवान तैयार किया और याकूब को दिया ताकि वह अपने पिता को पेश कर सके। लेकिन एक समस्या थी – इसहाक छूकर पहचान सकता था कि यह एसाव है या नहीं, क्योंकि एसाव रोएँदार था और याकूब चिकनी त्वचा वाला।

रिबका ने समाधान निकाला। उसने एसाव के कपड़े याकूब को पहनाए और उसके हाथों व गर्दन पर बकरे की खाल बाँध दी। इस तरह याकूब अपने पिता के सामने गया और कहा:
“पिता जी, मैं आपका बेटा एसाव हूँ। मैंने शिकार कर लिया है, उठिए और खाइए ताकि आप मुझे आशीर्वाद दें।”

इसहाक को थोड़ा शक हुआ। उसने पूछा:
“आवाज़ तो याकूब की लगती है, पर हाथ तो एसाव के हैं।” (उत्पत्ति 27:22)

आख़िरकार उसने याकूब को आशीर्वाद दे दिया। उसने कहा कि राष्ट्र उसके अधीन होंगे, लोग उसकी सेवा करेंगे और उसके भाई भी उसका आदर करेंगे। यह आशीर्वाद बहुत महान और भविष्य बदलने वाला था।

थोड़ी देर बाद एसाव शिकार करके लौटा। जब वह पकवान लेकर आया और आशीर्वाद माँगा, तो उसे सच का पता चला। वह जोर से रोया और बोला:
“पिता, मेरे लिए भी कोई आशीर्वाद बचा है?”

लेकिन इसहाक ने कहा कि मुख्य आशीर्वाद याकूब को मिल चुका है और उसे अब वापस नहीं लिया जा सकता। एसाव बहुत गुस्से में भर गया और उसने ठान लिया कि वह याकूब को मार डालेगा।

यह बात रिबका को पता चली, तो उसने तुरंत याकूब को बुलाया और कहा कि तू भाग जा और मेरे भाई लाबान (Laban) के घर हरान चला जा। वहाँ कुछ समय रहना जब तक तेरा भाई शांत न हो जाए।

इस तरह याकूब को अपने भाई के क्रोध और अपनी सुरक्षा के कारण घर छोड़कर भागना पड़ा। लेकिन यह भागना केवल भय के कारण नहीं था — यही परमेश्वर की योजना थी। याकूब का सफर अब शुरू हो चुका था, जिसमें वह परमेश्वर से सीधे मुलाक़ात करेगा और महान राष्ट्र का पूर्वज बनेगा।

🌌 याकूब का बेतएल का सपना

याकूब जब घर से भागा तो वह डर और अनिश्चितता से भरा हुआ था। उसका दिल भारी था — न केवल अपने पिता के आशीर्वाद के छल से, बल्कि भाई एसाव के गहरे क्रोध से भी। माँ रिबका ने उसे दूर भेजा ताकि वह सुरक्षित रहे, पर याकूब के लिए यह जाने-अनजाने एक नई यात्रा और आध्यात्मिक मोड़ भी थी।

अकेला सफर और एक रात का ठिकाना

रास्ते में जब दिन ढल गया और रात छा गई, याकूब एक पत्थर ढूंढकर उसके सिर के नीचे रखकर सो गया — बिना आश्रय के, अकेला और थका हुआ। उस रात के अँधेरे में उसके मन में कई सवाल थे: आगे क्या होगा? परमेश्वर का वादा किस तरह पूरा होगा?

सपना — सीढ़ी स्वर्ग तक और फरिश्तों की आवाज़

यहीं, अपने सादगी और थकान के बीच, याकूब ने एक सपना देखा। उसने देखा कि एक सीढ़ी धरती से स्वर्ग तक उठी है और उस पर फरिश्ते चढ़ते और उतरते हैं। वह दृश्य सरल पर अत्यंत गहरा था — मानो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का एक सीधा रास्ता दिखाई दे रहा हो।

फिर परमेश्वर ने उसकी ओर आवाज़ की और पुराने वादों को दोहराया:

  • “तेरे वंश को मैं ज़्यादा करूँगा।”
  • “तू और तेरे वंश उस भूमि को पाएँगे।”
  • “मैं तेरे साथ रहूँगा, जहां भी तू जाएगा, और मैं तुझे वापस उसी भूमि पर ले आऊँगा।” (उत्पत्ति 28:13–15 का सार)

यह वचन सिर्फ वादा नहीं था — यह याकूब के जीवन का नया मोड़ था: अब वह केवल भाग कर नहीं जा रहा था, बल्कि वह उस वादे के साथ आगे बढ़ रहा था जो उसे किसी दिन महान राष्ट्र का पूर्वज बनाएगा।

याकूब की प्रतिक्रया — भय, सम्मान और वचन

जागते ही याकूब का मुँह खुला रह गया। वह डर गया और बोला, “यह कितना भयानक स्थान है! यहां परमेश्वर है।” उसने उस जगह का नाम रखा “बेतएल” (House of God) — यानी परमेश्वर का घर।
याकूब ने वहाँ एक स्तंभ (पत्थर) उठाया और उस वचन की याद में शीर्ष पर तेल छिड़ककर एक प्रतिज्ञा भी की। उसने कहा :
“यदि परमेश्वर मेरे साथ रहेगा, मुझे रोटी और वस्त्र देगा, और मुझे सुरक्षित करके मेरे पिता के घर वापस ले आएगा, तो यहोवा मेरा परमेश्वर होगा; और जो भी तू मुझे देगा, मैं तेरा दहाई भाग अरप कर दूँगा।”

यह वचन न केवल भौतिक सुरक्षा के लिए था, बल्कि याकूब का आत्मिक समर्पण भी था — पर ध्यान दें, यह एक संधि-सा वादा था जहाँ याकूब ने अपनी शर्तें रखीं; बाद में हम देखते हैं कि परमेश्वर का काम अक्सर हमारी शर्तों से कहीं बड़ा और अनपेक्षित होता है।

याकूब का लाबान के घर जीवन और घर वापसी

याकूब बेघर, भयभीत और माँ की हिदायत लेकर हरान (Haran) पहुँचा — जहाँ उसकी मुलाक़ात अपने मामा लाबान की बेटी राहेल से हुई।। कुंड के पास उसने देख लिया कि एक युवती (राहेल) अपने पिता के भेड़ों को पानी दे रही है। याकूब ने बीड़ी से वह बड़ा पत्थर हटा दिया और सभी भेड़ों को पानी पिलाया — यह छोटा सा कार्य उसके दिल का आइना था। राहेल को देखकर वह रो पड़ा और उसी रात उसने लाबान के घर में ठहरने का निश्चय किया।

याकूब ने राहेल को देखते ही मन ही मन उससे प्रेम कर लिया। याकूब राहेल से इतना प्यार करने लगा कि उसने लाबान से कहा: “मैं राहेल को पाने के लिए सात वर्ष तुम्हारे काम करूँगा। सात साल ऐसे बीत गए जैसे कुछ ही दिन हों।

लेकिन शादी की रात लाबान ने उसे धोखा दिया और राहेल की जगह बड़ी बेटी लीआ को दे दिया। जब याकूब को यह बात पता चली तो वह बहुत दुखी हुआ। लाबान ने कहा कि यहां की रिवाज़ के अनुसार बड़ी बेटी को पहले रिश्ता दिया जाता है — और लाबान ने कहा कि यदि वह राहेल चाहता है तो उसे और सात साल सेवा करनी होगी। याकूब ने धैर्य रखा और राहेल को भी पत्नी बना लिया और इस प्रकार याकूब ने कुल मिलाकर 14 साल सेवा की।

धीरे-धीरे याकूब का परिवार बड़ा होता गया लीआ ने पहले छह बेटे और एक बेटी दी — (पहले चार बेटे :रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा — और बाद में इस्साकार, जबूलून तथा बेटी दीना) अन्त मैं परमेश्वर ने राहेल को धन्य करके यूसुफ दिया ( यह परिवार में एक नई आशा लेकर आया) । इस तरह लीआ, राहेल और उनकी दासियों से याकूब के 12 बेटे हुए, जो आगे चलकर इस्राएल की 12 जातियों (Tribes of Israel) के नेता बने।

परमेश्वर ने याकूब को समृद्ध किया, उसके पास बहुत भेड़-बकरियाँ और संपत्ति हो गईं।

लेकिन लाबान बार-बार उसकी मज़दूरी बदलता रहा और चालाकियाँ करता रहा। तब एक दिन परमेश्वर ने याकूब से कहा :
“अपने जन्मस्थान लौट जा, मैं तेरे साथ रहूँगा।”

याकूब ने अपने परिवार और संपत्ति को लेकर हरान से निकलना शुरू किया। लाबान ने उसका पीछा किया, लेकिन आखिरकार दोनों ने आपस में समझौता किया और शांति से अलग हो गए। इस तरह याकूब परमेश्वर के वादे पर भरोसा रखते हुए अपने घर की ओर लौट चला।

याकूब और एसाव का पुनर्मिलन 🤝

याकूब को पता चला कि एसाव अपने चार सौ आदमी लेकर आ रहा है। यह सुनकर उसका मन घबरा उठा — वह सोचता है कि अब एसाव उसे मार डालेगा। डर के बावजूद उसने समझदारी से काम लेना शुरू किया।

याकूब ने दूत भेजकर एसाव को शांति का पत्र दिया और साथ ही रात में परमेश्वर के सामने रोते हुए प्रार्थना की — उसने परमेश्वर को याद दिलाया कि वादे पूरे होंगे और बचाने की दुआ माँगी। यह उसका विनम्र और भरोसेमंद दिल दर्शाता है।

याकूब ने अपने परिवार को दो छड़ों में बाँट दिया ताकि अगर एक पर हमला हुआ तो दूसरा बच सके। उसने अपने गृहस्थियों और पशुओं को क्रमवार रखकर सुरक्षा की व्यवस्था की और एसाव के लिए उपहार भेजने की रणनीति बनाई — छोटे-छोटे समूहों में उपहार भेजा ताकि उसका दिल नरम हो जाए।

रात में याकूब ने परमेश्वर के दूत से जुझाई की और आशीर्वाद माँगा। उसी रात उसका नाम बदलकर “इस्राएल” रखा गया, जिसका मतलब है — परमेश्वर के साथ संघर्ष करने वाला। अब वह नया इंसान बन चुका था।

सुबह जब याकूब ने देखा कि एसाव सचमुच बहुत बड़ा झुंड लेकर आ रहा है, तो उसने अपने आपको पूरी वास्तविकता के साथ प्रस्तुत किया — वह सात बार झुककर एसाव का अभिवादन करने लगा लेकिन एसाव ने याकूब को आते देख भागकर उसे गले लगा लिया दोनों भाई रो पड़े और शांति हुई। एसाव ने उपहार स्वीकार कर लिए और गुस्सा उतर गया और पुरानी दुश्मनी मिट गई। यह क्षमा का वह क्षण था जहाँ पुरानी घृणा टूट कर प्यार में बदल गई।

एसाव ने साथ चलने का प्रस्ताव रखा, लेकिन याकूब ने अपने परिवार की सुविधा के लिए अलग रास्ता चुना। दोनों शांति से अलग हुए, पर अब वे दुश्मन नहीं बल्कि भाई बन गए।

याकूब और एसाव की कहानी से जीवन की सीख

याकूब और एसाव की कहानी हमें सिर्फ़ बाइबल का इतिहास नहीं बताती, बल्कि हमारे जीवन के लिए गहरी सीख भी देती है। इंसान के डर, गलती, चालाकी, संघर्ष और अंत में क्षमा — सब इसमें साफ़ दिखाई देते हैं। आइए समझते हैं कि इस कहानी से हम क्या सीख सकते हैं।

अधीरता और लालच से हानि होती है

एसाव ने सिर्फ़ एक कटोरे दाल के लिए अपना जन्मसिद्ध अधिकार बेच दिया। यह हमें सिखाता है कि जब हम तुरंत सुख पाने के चक्कर में बड़ी चीज़ खो देते हैं, तो पछताना पड़ता है।
👉 सीख: कभी भी छोटे-छोटे लालच के लिए बड़े आशीर्वाद को मत छोड़ो।

धोखे का परिणाम अच्छा नहीं होता

याकूब ने चालाकी से अपने पिता इसहाक को धोखा दिया और आशीर्वाद छीन लिया। हालांकि उसे आशीर्वाद मिला, लेकिन उसे घर छोड़कर भागना पड़ा और सालों तक संघर्ष करना पड़ा।
👉 सीख: झूठ और धोखे से मिलने वाली जीत भी शांति नहीं देती।

संघर्ष से बदलाव आता है

जब याकूब ने रात भर परमेश्वर के दूत से संघर्ष किया, तो उसे नया नाम “इस्राएल” मिला और वह बदल गया। यह सिखाता है कि जीवन के संघर्ष हमें नया बनाते हैं और परमेश्वर हमें हमारी पहचान देते हैं।
👉 सीख: संघर्ष से मत भागो, क्योंकि यही तुम्हें मजबूत बनाता है।

डर को प्रार्थना से जीत सकते हैं

जब याकूब को एसाव का डर था, उसने परमेश्वर से प्रार्थना की और भरोसा किया। अंत में परमेश्वर ने सब ठीक कर दिया।
👉 सीख: मुश्किल समय में प्रार्थना ही सबसे बड़ा हथियार है।

क्षमा रिश्तों को नया जीवन देती है

एसाव ने पुराने ग़ुस्से को छोड़कर याकूब को गले लगाया। यह पल हमें सिखाता है कि क्षमा सबसे बड़ी शक्ति है, जो रिश्तों को फिर से जोड़ देती है।
👉 सीख: क्षमा करने वाला हमेशा विजयी होता है।

निष्कर्ष

याकूब और एसाव की कहानी हमें सिखाती है कि —

  • लालच से नुकसान होता है,
  • धोखे से शांति नहीं मिलती,
  • संघर्ष हमें नया बनाता है,
  • प्रार्थना डर को जीत लेती है,
  • और क्षमा रिश्तों को बचा लेती है।

अगर हम इन बातों को जीवन में अपनाएँ तो हमारा जीवन भी परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बदल सकता है औरहमे आशीषो से भर सकता है।

याकूब और एसाव की कहानी से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर (FAQ)

याकूब और एसाव कौन थे?

उत्तर: याकूब और एसाव, इसहाक और रिबका के जुड़वां बेटे थे (उत्पत्ति 25:19-34)। एसाव बड़ा था और शिकारी था, जबकि याकूब शांत स्वभाव का था। बाइबल बताती है कि याकूब ने चालाकी से एसाव का जन्माधिकार और पिता इसहाक का आशीर्वाद ले लिया। बाद में दोनों भाइयों का पुनर्मिलन हुआ और उन्होंने एक-दूसरे को क्षमा कर दिया।

एसाव ने अपना जन्माधिकार क्यों बेचा?

उत्तर: जब एसाव शिकार से थका-हारा लौटा, तो उसने याकूब से खाने की माँग की। याकूब ने कहा कि वह भोजन देगा लेकिन जन्माधिकार के बदले। एसाव ने भूख के कारण अपनी आशीष का मूल्य नहीं समझा और जन्माधिकार बेच दिया (उत्पत्ति 25:29-34)।

याकूब ने अपने पिता इसहाक को धोखा कैसे दिया?

उत्तर: इसहाक वृद्ध और आँखों से कमजोर हो गए थे। रिबका ने याकूब को सलाह दी कि वह एसाव की तरह भेष बदलकर पिता के सामने जाए। याकूब ने बकरी की खाल अपने हाथों पर लगाई और एसाव के वस्त्र पहन लिए। इस तरह उसने इसहाक से आशीर्वाद प्राप्त कर लिया (उत्पत्ति 27:1-29)।

बेतएल का सपना किसने देखा और उसके मायने क्या हैं?

उत्तर: जब याकूब अपने भाई से भागकर लाबान के घर जा रहा था, तब उसने बेतएल में रात को पत्थर तकिया बनाकर सोया। वहाँ उसने सपना देखा कि एक सीढ़ी धरती से आकाश तक जा रही है और परमेश्वर के दूत उस पर चढ़ते-उतरते हैं। परमेश्वर ने उसे प्रतिज्ञा दी कि उसकी संतति बहुत होगी और वह उसे आशीर्वाद देगा (उत्पत्ति 28:10-22)।

याकूब और एसाव का पुनर्मिलन कैसे हुआ?

उत्तर: वर्षों बाद जब याकूब कनान लौट रहा था, तो वह एसाव से डर रहा था। लेकिन एसाव ने गुस्से की जगह प्रेम दिखाया। जब दोनों मिले तो एसाव ने याकूब को गले लगाया और दोनों रो पड़े। इस तरह उनका पुनर्मिलन हुआ (उत्पत्ति 33:1-4)।

याकूब का नाम ‘इस्राएल’ क्यों रखा गया?

उत्तर: जब याकूब कनान लौट रहा था, उसने एक स्थान पर रात भर परमेश्वर के दूत के साथ संघर्ष किया। तब परमेश्वर ने उसका नाम बदलकर “इस्राएल” रखा, जिसका अर्थ है – “परमेश्वर से संघर्ष करने वाला” (उत्पत्ति 32:22-32)।

याकूब के कितने पुत्र थे और उनके नाम क्या हैं?

1. रूबेन
2. शिमोन
3. लेवी
4. यहूदा
5. दान
6. नप्ताली
7. गाद
8. आशेर
9. इस्साकार
10. जबूलून
11. यूसुफ
12. बिन्यामीन
 ये 12 पुत्र आगे चलकर इस्राएल की 12 जातियों के पूर्वज बने।

याकूब और एसाव की कहानी से हमें क्या जीवन की सीख मिलती है?

उत्तर: इस कहानी से कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं:
लालच और जल्दबाजी से आशीष खो सकती है (जैसे एसाव ने किया)।
धोखा देना गलत है, परंतु परमेश्वर की योजना फिर भी पूरी होती है।
मेल-मिलाप और क्षमा जीवन में सबसे बड़ा आशीर्वाद है।

बाइबल में याकूब और एसाव की कहानी कहाँ से शुरू होती है?

उत्तर: याकूब और एसाव की कहानी बाइबल की उत्पत्ति की पुस्तक (Genesis) अध्याय 25 से 36 में पाई जाती है।

इसहाक के आशीर्वाद का महत्व क्या था?

उत्तर: बाइबल में पिता का आशीर्वाद भविष्य के लिए विशेष महत्व रखता था। इसहाक का आशीर्वाद सिर्फ संपत्ति या नाम के लिए नहीं, बल्कि परमेश्वर की प्रतिज्ञा से जुड़ा था। इसलिए याकूब ने उसे पाने के लिए छल किया और एसाव ने उसे खोने पर दुःख मनाया (उत्पत्ति 27:30-40)।

याकूब का नाम इस्राएल क्यों पड़ा?

उत्तर: बाइबल बताती है कि जब याकूब अपने भाई एसाव से मिलने कनान लौट रहा था, तब उसने एक रात याबोक नदी के किनारे अकेले समय बिताया। वहाँ उसने परमेश्वर के एक दूत के साथ पूरी रात संघर्ष किया। सुबह होने पर उस दूत ने याकूब से कहा – “तेरा नाम अब याकूब नहीं रहेगा, परन्तु इस्राएल होगा; क्योंकि तूने परमेश्वर और मनुष्यों से संघर्ष किया और विजयी हुआ” (उत्पत्ति 32:28)।
👉 “इस्राएल” का अर्थ है – “परमेश्वर से संघर्ष करने वाला और विजयी होने वाला”।

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