
नूह की कहानी (Nooh ki Kahani) – बाइबल के अनुसार, सरल हिन्दी में
शुरुआत: नूह कौन थे?
बहुत साल पहले की बात है। धरती पर इंसान अपनी-अपनी मर्जी से जी रहे थे। कोई सही-गलत की परवाह नहीं करता था। लोग झूठ बोलते थे, दूसरों को चोट पहुँचाते थे, चोरी करते थे, और तरह-तरह के बुरे कामों में लगे रहते थे।
बाइबल (उत्पत्ति 6 अध्याय) कहती है—“मनुष्यों की दुष्टता पृथ्वी पर बहुत बढ़ गई थी।”
लेकिन इस सब बुराई के बीच एक आदमी था—नूह।
नूह अलग थे। वे सीधे-सच्चे थे और परमेश्वर से डरते थे। वो हर काम ईश्वर को याद करके करते थे। यही कारण है कि बाइबल में लिखा है—“नूह धर्मी व्यक्ति था, और नूह परमेश्वर के साथ चलता था।”
यानी जब दुनिया अंधकार में थी, तब नूह एक रोशनी की किरण की तरह चमक रहे थे।
धरती पर बुराई का फैलना :-
समय बीतता गया और लोगों की बुराई बढ़ती ही चली गई। झगड़े, लड़ाइयाँ, हिंसा—सब ओर फैली थी। लोग सोचते थे, “हमारी ताकत ही सबकुछ है।”
परमेश्वर दुखी हो गए। उन्होंने सोचा,
“अब इस धरती को एक नई शुरुआत की ज़रूरत है। मैं एक बड़ी बाढ़ लाऊँगा, ताकि इस पाप और बुराई से धरती साफ हो सके।”
लेकिन साथ ही परमेश्वर दयालु भी हैं। उन्होंने तय किया कि वे पूरी दुनिया को नहीं मिटाएँगे। वे एक धर्मी परिवार के ज़रिए नई शुरुआत करेंगे। और वो परिवार था—नूह और उनके बच्चे।

नूह को मिला परमेश्वर का आदेश :-
एक दिन परमेश्वर ने नूह से कहा—
“नूह! मैंने देखा है कि धरती बुराई से भर चुकी है। अब मैं प्रलय लाऊँगा। लेकिन तुम और तुम्हारा परिवार बचोगे। तुम मेरे लिए एक बड़ी नाव (किश्ती/Ark) बनाओ। उसी में तुम, तुम्हारे परिवार और हर प्रकार के जीव-जंतु सुरक्षित रहेंगे।”
नूह चौंक गए। इतनी बड़ी नाव? और वो भी सूखी ज़मीन पर?
लेकिन नूह ने एक शब्द भी सवाल नहीं किया। उन्होंने बस सिर झुका कर सोचा—
“अगर परमेश्वर ने कहा है, तो यह जरूर सच होगा। और मैं वही करूंगा।”
नाव बनाने का अद्भुत काम :-
नूह ने नाव बनाना शुरू किया। नाव बहुत विशाल थी। बाइबल में उसका माप भी बताया गया है—लगभग 300 हाथ लंबी, 50 हाथ चौड़ी और 30 हाथ ऊँची। उसमें कई कमरे थे, एक बड़ा दरवाज़ा और ऊपर एक खिड़की। नाव को गोंफर लकड़ी से बनाया गया और अंदर-बाहर गारे (पिच) से लीप दिया गया ताकि पानी अंदर न आए।
यह काम कोई एक-दो दिन का नहीं था। सालों-साल लग गए।
लोग आते, देखते और हँसते—
“अरे नूह! पागल हो गए हो क्या? इतनी बड़ी नाव ज़मीन पर? और कहते हो बारिश से सब डूब जाएगा? कभी हुआ है ऐसा?”
लेकिन नूह चुपचाप मेहनत करते रहे।
वे सोचते—“लोग मज़ाक उड़ाएँ, कोई बात नहीं। मुझे तो परमेश्वर की बात माननी है।”

जानवरों की तैयारी :-
नाव बनकर तैयार हुई तो परमेश्वर ने नूह को नया आदेश दिया—
“हर प्रकार के जीव-जंतु—नर और मादा—को इस नाव में ले आओ। ताकि प्रलय के बाद वे फिर से धरती पर रह सकें।”
सोचो जरा—हाथी, घोड़े, गाय, बकरी, पक्षी, बिल्ली, कुत्ते, यहाँ तक कि छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े भी!
सभी के जोड़े-जोड़े नाव में आने लगे। यह कोई साधारण बात नहीं थी। यह खुद परमेश्वर का चमत्कार था।
नूह और उनका परिवार सबके लिए भोजन और पानी भी इकट्ठा करते रहे। ताकि लंबे समय तक सबको खाना मिलता रहे।
नाव में प्रवेश :-
अब वह समय आ गया।
परमेश्वर ने कहा—“नूह, तुम अपने परिवार के साथ नाव में प्रवेश करो। मेरे चुने हुए जीव-जंतु भी आ जाएँगे। और मैं स्वयं दरवाज़ा बंद कर दूँगा।”
नूह, उनकी पत्नी, उनके तीन बेटे—शेम, हाम और येफ़त—और उनकी पत्नियाँ—कुल आठ लोग—नाव में चले गए।
जानवर भी दो-दो कर अंदर आ गए।
और जब सब अंदर हो गए, तो बाइबल कहती है—“यहोवा ने स्वयं दरवाज़ा बंद किया।”
बारिश का आरम्भ: 40 दिन और 40 रात :-
अचानक आसमान काला हो गया। बादल गरजने लगे। और फिर शुरू हुई भारी बारिश।
एक दिन… दो दिन… पाँच दिन… दस दिन… लगातार पानी बरसता गया।
चालीस दिन और चालीस रात बारिश होती रही।
नदियाँ उफन पड़ीं। समुद्र पहाड़ों तक चढ़ गया। छोटे-छोटे घर, गाँव, शहर—सब पानी में डूब गए। यहाँ तक कि ऊँचे पहाड़ भी ढँक गए।
जो भी नाव के बाहर था, बच नहीं सका।
सिर्फ नूह, उनका परिवार और नाव के अंदर जीव-जंतु सुरक्षित थे।
नाव पानी पर तैरती रही।

लंबा इंतज़ार :-
बारिश रुक गई, लेकिन धरती पर पानी छाया रहा। दिन बीतते गए।
नूह और उनका परिवार धैर्य से इंतज़ार करते रहे। नाव तैरती-तैरती अंत में अरारात के पहाड़ों पर आकर ठहर गई।
लेकिन अभी भी बाहर निकलना जल्दीबाज़ी होती। नूह को इंतज़ार करना था कि धरती पूरी तरह सूख जाए।
कौआ और कबूतर :-
नूह ने खिड़की से बाहर देखा। उन्होंने सोचा—“चलो देखें कि पानी कितना उतरा है।”
पहले उन्होंने एक कौआ छोड़ा। कौआ उड़ता रहा और कभी लौटकर नहीं आया।
फिर नूह ने एक कबूतर छोड़ा। कबूतर उड़कर बाहर गया, लेकिन कुछ देर बाद वापस आ गया, क्योंकि उसे कहीं बैठने की जगह नहीं मिली।
सात दिन बाद नूह ने कबूतर फिर छोड़ा। इस बार कबूतर अपनी चोंच में ज़ैतून की हरी पत्ती लेकर लौटा।
नूह का दिल खुशी से भर गया। इसका मतलब था—पानी उतर चुका है और धरती पर हरियाली लौट आई है।
फिर सात दिन बाद कबूतर को फिर छोड़ा। और इस बार कबूतर लौटा ही नहीं। यानी अब वह बाहर कहीं रह सकता था।
नई शुरुआत :-
अब परमेश्वर ने कहा—“नूह, बाहर निकलो। अपने परिवार और सभी जीव-जंतुओं के साथ बाहर आ जाओ।”
नूह बाहर निकले। ठंडी हवा चली। सूरज चमक रहा था। धरती फिर से नई लग रही थी।
नूह ने सबसे पहले क्या किया? उन्होंने परमेश्वर के लिए वेदी (altar) बनाई और बलिदान चढ़ाया। उन्होंने धन्यवाद दिया—
“धन्यवाद प्रभु, आपने हमें बचाया। आपने हमें नई शुरुआत दी।”

इंद्रधनुष—परमेश्वर का वादा :-
तब परमेश्वर ने नूह और उनके परिवार से कहा—
“मैं तुमसे एक वाचा करता हूँ। अब मैं फिर कभी पूरी धरती पर ऐसा प्रलय नहीं लाऊँगा जो सब जीवन को नष्ट कर दे। जब-जब आसमान में इंद्रधनुष दिखाई देगा, यह मेरी प्रतिज्ञा की याद दिलाएगा।”
और तभी आसमान में सात रंगों का सुंदर इंद्रधनुष चमक उठा।
नूह और उनका परिवार इंद्रधनुष को देखते रहे। उनके दिल में शांति और आशा भर गई।
नूह की संतानों से फैली नई दुनिया :-
नूह के तीन बेटे—शेम, हाम और येफ़त—से आगे पूरी दुनिया की जातियाँ फैलीं।
इस तरह धरती ने फिर से एक नई शुरुआत की।
कहानी से सीख (Lessons from Nooh ki Kahani) :-
सचाई पर डटे रहो: भले लोग हँसें, मज़ाक उड़ाएँ, लेकिन अगर तुम सही हो तो मत डगमगाओ।
परमेश्वर पर भरोसा करो: जब वह कहें, तो मानो। भले तुम्हें समझ न आए, पर उनका प्लान सबसे सही होता है।
धैर्य रखो: नूह ने सालों तक नाव बनाई, महीनों तक इंतज़ार किया। धैर्य हमेशा फल देता है।
आभार जताओ: बचने के बाद नूह ने सबसे पहले धन्यवाद दिया। शुक्रगुज़ारी हमेशा जीवन को आशीष देती है।
इंद्रधनुष आशा का प्रतीक है: कठिन समय के बाद हमेशा नया उजाला आता है।
🌈 नूह की कहानी से मिलने वाली प्रेरणाएँ
विश्वास और आज्ञाकारिता की शक्ति :-
नूह ने परमेश्वर पर आँख मूँदकर भरोसा किया। जब दुनिया मज़ाक उड़ाती थी, तब भी वे परमेश्वर की आज्ञा मानते रहे।
👉 इससे हमें सीख मिलती है कि अगर हम ईश्वर की बातों पर विश्वास करें और सही रास्ते पर चलें, तो चाहे लोग मज़ाक उड़ाएँ या विरोध करें, अंत में जीत सच्चाई और विश्वास की ही होती है।
भीड़ का दबाव न मानना :-
नूह के समय में पूरी धरती बुराई से भर गई थी। लेकिन नूह अकेले भीड़ के खिलाफ खड़े रहे और अच्छे बने रहे।
👉 हमें भी सीख मिलती है कि अगर सब गलत कर रहे हों, तब भी हमें सही का साथ देना चाहिए।
धैर्य और मेहनत का फल :-
नूह ने नाव बनाने में 100 से अधिक साल लगाए। इतने लंबे समय तक मेहनत और धैर्य रखना आसान नहीं है।
👉 इसका संदेश है कि जब हम किसी अच्छे काम के लिए धैर्य और मेहनत करते हैं, तो उसका परिणाम जरूर मिलता है।
परिवार के साथ आस्था :-
नूह का परिवार भी उनके साथ बचा, क्योंकि उन्होंने परिवार को विश्वास में शामिल किया।
👉 इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि हम अपने परिवार को भी विश्वास और सही रास्ते पर ले चलें।
नई शुरुआत की आशा :-
बाढ़ के बाद इंद्रधनुष परमेश्वर का वादा था कि वह दोबारा ऐसी बाढ़ नहीं लाएगा। यह उम्मीद और नई शुरुआत का प्रतीक है।
👉 इसका अर्थ है कि कठिन समय के बाद हमेशा नई सुबह और नई उम्मीद आती है।
निष्कर्ष :-
नूह की कहानी हमें सिखाती है कि अगर हम सचाई, विश्वास और धैर्य से चलते हैं तो परमेश्वर हमें बचाते हैं।
लोग चाहे मज़ाक उड़ाएँ, लेकिन अगर हम परमेश्वर की आज्ञा मानेंगे, तो अंत में जीत हमारी होगी।
इंद्रधनुष हमें हमेशा याद दिलाता है कि परमेश्वर का वादा कभी टूटता नहीं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ
प्रश्न 1. नूह कौन थे?
उत्तर :- नूह एक धर्मी और निर्दोष व्यक्ति थे, जो परमेश्वर के साथ चलते थे। वे आदम की दसवीं पीढ़ी में पैदा हुए और बाइबल के अनुसार उन्होंने अपने समय में परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन किया।
प्रश्न 2. नूह की नाव (आर्क) क्यों बनाई गई थी?
उत्तर :- परमेश्वर ने देखा कि पूरी धरती पाप और हिंसा से भर गई है। इसलिए उसने प्रलय (जलप्रलय) भेजने का निश्चय किया और नूह को नाव (आर्क) बनाने का आदेश दिया ताकि वह अपने परिवार और हर प्रजाति के जानवरों को बचा सके।
प्रश्न 3. नूह की नाव में कितने लोग बचे थे?
उत्तर :- नूह की नाव में केवल 8 लोग बचे थे – नूह, उनकी पत्नी, उनके तीन बेटे (शेम, हाम और याफ़ेत) और उनकी पत्नियाँ।
प्रश्न 4: इंद्रधनुष का क्या अर्थ है?
उत्तर :- प्रलय के बाद परमेश्वर ने नूह और उसके परिवार से वाचा की कि अब वह फिर कभी पूरी धरती पर जलप्रलय नहीं लाएगा। इसके चिन्ह के रूप में परमेश्वर ने इंद्रधनुष (Rainbow) दिया।
प्रश्न 5. जलप्रलय कितने दिन चला था?
उत्तर :- बाइबल के अनुसार, पृथ्वी पर 40 दिन और 40 रात लगातार बारिश हुई। इसके बाद पानी धरती पर लंबे समय तक भरा रहा और कुल मिलाकर लगभग एक वर्ष बाद नूह और उसका परिवार नाव से बाहर निकला।